अजमेर राजस्थान की पावन भूमि
राजा अजयपाल चौहान ने सांतवी शताब्दी में अजमेर शहर की स्थापना की थी. आज अजमेर हिंदुओं और मुसलमानों की धार्मिक नगरी की पहचान के रूप में जाना जाता है. 1193 तक चौहान शासको का मुख्य केन्द्र बना रहा लेकिन मोहम्मद गौरी ने जब पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया उसके बाद अजमेर पर कई वंशो ने अपना आधिपत्य जमाया. 1818 के बाद ब्रिटिश शासनकाल के दौरान यहां कई शिक्षण केन्द्रों कि स्थापना हुई. इसके कारण आज यह देश के महत्त्वपूर्ण शिक्षण केन्द्रों में गिना जाता है. वर्तमान समय में यह हिंदू जैन और मुसलमान धर्मावलंबियों के लिए पावन तीर्थ स्थल बन चूका है. अजमेर से 11 किलोमीटर दूर पुष्कर में भगवान ब्रह्मा का पुरे विश्व में एक मात्र मन्दिर है.
सामान्य जानकारी क्षेत्रफल : ५५.७६ वर्ग किलोमीटर ऊंचाई : 486 मीटर तापमान : गर्मी – 27.7-38.1 सर्दी – 05.5-23.3 वर्षा : ३८ से ५१ सेंटीमीटर उत्तम मौसम : जुलाई-मार्च कैसे पहुंचे वायु मार्ग : जयपुर १३२ किमी० का हवाई अड्डा नजदीक पड़ता है. रेल मार्ग : अजमेर सभी बड़े शहरों से रेल से जुड़ा है. सड़क : यहां पर बसों के द्वारा भी आया जा सकता है.
मुख्य दर्शनीय स्थल
दरगाह ख्वाजा साहिब –
यहां सूफी संत ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह विश्व प्रसिद्ध है और सभी धर्मावलंबियों के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है. यहां उनका मकबरा भी जो ख्वाजा साहब या ख्वाजा शरीफ के नाम से जाना जाता है. मस्जिद के विशाल द्वार का निर्माण हैदराबाद के निजाम ने करवाया था. दरगाह के प्रागंण में उत्कृष्ट संगमरमरी गुम्बद से युक्त संत का मकबरा स्थित है जो चांदी के चबूतरे से घिरा है. दरगाह में स्थित दो विशालकाय कडाहे दर्शनीय है. अकबर , आगरा से, वर्ष में एक बार दर्शन करने आता था. दरगाह परिसर में शाहजहाँ द्वारा निर्मित एक अन्य मस्जिद भी है.
शाहजहाँ की मस्जिद
दरगाह के भीतरी चौक के कोने में सफेद संगमरमर से बनी यह शानदार इमारत है जिसके ३०.५ मीटर लम्बे तथा संकरे प्रांगण में झुके हुए तोरण और जाली द्वारा की गई परिष्कृत नक्काशी है. दरगाह के भीतरी स्थित सभी इमारतों में से यह सबसे अधिक उत्कृष्ट है.
पुष्कर
अजमेर से ११ कि.मी. दूर हिन्दुओं का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल पुष्कर है। यहां पर कार्तिक पूर्णिमा को पुष्कर मेला लगता है, जिसमें बड़ी संख्या में देशी-विदेशी पर्यटक भी आते हैं। हजारों हिन्दु लोग इस मेले में आते हैं। एक समय वज्रनाभ नामक एक राक्षस इस स्थान में रह कर ब्रह्माजी के पुत्रों का वध किया करता था। ब्रह्माजी ने क्रोधित हो कर कमल का प्रहार कर इस राक्षस को मार डाला। उस समय कमल की जो तीन पंखुडियाँ जमीन पर गिरीं, उन स्थानों पर जल धारा प्रवाहित होने लगी। कालांतर में ये ही तीनों स्थल ज्येष्ठ पुष्कर, मध्यम पुष्कर व कनिष्ठ पुष्कर के नाम से विख्यात हुए।
अढाई-दिन-का-झोपड़ा
पूर्व में यहां एक मन्दिर के अंदर संस्कृत कॉलेज स्थापित था. सन् 1193 में मोहम्मद गौरी ने अजमेर पर विजय हासिल करने के पश्चात यहां एक मस्जिद निर्माण की आज्ञा दी और सिर्फ अढाई दिन में इस इमारत में खेमो युक्त दालान के सामने सात मेहराबो वाली दीवार बनाकर इसे मस्जिद में तब्दील कर दिया. अब खंडहर के रूप में यह उत्कृष्ट इमारत अढाई दिन के झोपड़े के नाम से जानी जाती है.
तारागढ़ का किला
संग्रहालय
इस संग्रहालय में मुगल एवं राजपूत वीरों द्वारा पहने जाने वाले कवचो के अतिरिक्त उत्कृष्ट मूर्तियों का संग्रह किया गया है. पूर्व में यह संग्रहालय महाराजा अकबर का शाही निवास हुआ करता था.
मैयो कॉलेज
इस शैक्षिणक संस्थान का नाम देश की नामी पब्लिक स्कूलों में शामिल है शहर के दक्षिण पूर्व में स्थित यह पब्लिक स्कूल राजकुमारों के लिए 1875 में स्थापित किया गया . ८१ हैक्टेयर क्षेत्र में फैले कॉलेज के विस्तृत मैदान में प्रत्येक राजकुमार अपने नौकर-चाकर और एक अंग्रजी अध्यापक के साथ अपने घर में रहता था. अब यह पब्लिक स्कूल है जिसका प्रवेश सबके लिए खुला है.
नासियाँ
इस प्रमुख दिगम्बर जैन मन्दिर का निर्माण 1865 में हुआ. सिद्धकूट चैतालिया के नाम से प्रसिद्ध इस मन्दिर के पीछे स्वर्ण नगरी हॉल में जैन तीर्थकरो की आकर्षक मूर्तियों स्थापित है. ये मूर्तियों १८९६ में जयपुर से बनकर यहां स्थापित की गई है. लाल मंदिर दिगंबर जैन मंदिर है जो एक डबल मंजिला मुख्य मंदिर के निकट हॉल है. हॉल बड़े सोना मढ़वाया लकड़ी जैन पौराणिक कथाओं से किंवदंतियों चित्रण आंकड़े की एक श्रृंखला प्रदर्शित करता है. पूरे हॉल को बड़े पैमाने पर ग्लास मोज़ेक, कीमती पत्थर, सोना और चांदी के काम से सजी है. जगह भी लोकप्रिय सोनी जी की Nasiyan कहा.
अब्दुला खां का मकबरा
राजा फारुख सियार के एक मंत्री हुसैन अली खां के पिता अब्दुला खां का यह मकबरा रेलवे स्टेशन के निकट स्थित है. इसका निर्माण 1710 में हुआ. इसके पास ही अब्दुला खां कि बेगम का मकबरा भी है.
अन्ना सागर
इस सुंदर झील का निर्माण १२वीं सदी में अन्नाजी चौहान ने करवाया था. जन सहयोग से निर्मित इस बांध से तत्कालीन राजा एवं प्रजा के आपसी सहयोग की भावना को प्रतिबिंबित होती है. यहां स्थित बारादरी का निर्माण शाहजहाँ और बाद में दौलत बाग का निर्माण जहांगीर ने करवाया था.
फाय सागर
इस कृत्रिम सुरम्य झील का नाम इंजीनियर फाय पर रखा गया है जिन्होंने इसे सुखा राहत परियोजना के अंतर्गत निर्मित किया था.
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