संविधान में संशोधन 01-20
संविधान में समय-समय पर आवश्यकता होने पर संशोधन भी होते रहे हैं। विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को 'संशोधन' कहा जाता है।संविधान में संशोधन 01-20
1. संविधान (प्रथम संशोधन) अधिनियम, 1950-
इस संशोधन में संविधान के अनुच्छेद-19 में वर्णित वाणी की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार तथा कोई वृत्ति, उपजीविका,व्यापार या कारोबार करने के अधिकार पर प्रतिबंध लगाने के नए अधिकारों की व्यवस्था है । इन प्रतिबंधों का प्रावधान सार्वजनिक व्यवस्था, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों अथवा बोलने की स्वतंत्रता के अधिकार के संदर्भ में अपराध-उद्दीपन और व्यावसायिक या तकनीकी अर्हताएं विहित करने अथवा कोई व्यापार या कारोबार चलाने के अधिकार के संदर्भ में राज्य आदि द्वारा कोई व्यापार, कारोबार, उद्योग अथवा सेवा चलाने के संबंध में किया गया है। इस संशोधन द्वारा दो नए अनुच्छेद-31क और 31ख तथा नौवीं अनुसूची को शामिल किया गया, ताकि भूमि सुधार कानूनों को चुनौती न दी जा सके ।2. संविधान (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 1952-
इस संशोधन द्वारा लोकसभा चुनाव के लिए प्रतिनिधित्व के अनुपात को पुनः समायोजित किया गया ।3. संविधान (तृतीय संशोधन) अधिनियम, 1954-
इस संशोधन द्वारा (सातवीं अनुसूची की) सूची 3 (समवर्ती सूची) की प्रविष्टि 33 प्रतिस्थापित की गई है, ताकि वह अनुच्छेद-396 के समरूप हो सके ।4. संविधान (चतुर्थ संशोधन) अधिनियम, 1955-
निजी संपत्ति को अनिवार्यतः अर्जित या अधिग्रहीत करने की राज्य की शक्तियों की फिर से ठीक-ठीक ढंग से व्याख्या करने और इसे उन मामलों से जहां राज्य की विनियमनकारी और प्रतिषेधात्मक विधियों के प्रवर्तन से किसी व्यक्ति को संपत्ति से वंचित किया गया हो, अलग करने के लिए संविधान के अनुच्छेद-31(2) में संशोधन किया गया । संविधान के अनुच्छेद-31क की परिधि का जमींदारी उन्मूलन जैसे आवश्यक कल्याणकारी कानूनों तक विस्तार करने तथा शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के समुचित आयोजन और देश के खनिज तथा तेल स्रोतों पर पूरा नियंत्रण करने के उद्देश्य से इस अनुच्छेद में संशोधन किया गया । नौवीं अनुसूची में छह अधिनियम भी शामिल किए गए । राज्य-एकाधिपत्यों के लिए उपबंध करने वाली विधियों के समर्थन में अनुच्छेद-305 में भी संशोधन किया गया ।5. संविधान (पांचवां संशोधन) अधिनियम, 1955-
इस संशोधन में अनुच्छेद-3 में संशोधन किया गया, जिसमें राष्ट्रपति को यह शक्ति दी गई कि वह राज्य विधान-मंडलों द्वारा अपने-अपने राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं आदि पर प्रभाव डालने वाली प्रस्तावित केंद्रीय विधियों के बारे में अपने विचार भेजने के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित कर सकते हैं ।6. संविधान (छठा संशोधन) अधिनियम, 1956-
इस संशोधन द्वारा अंतरराज्यीय व्यापार और वाणिज्य में वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर करों के संबंध में अनुच्छेद-269 और 286 में कुछ परिवर्तन किए गए। संविधान की सातवीं अनुसूची की संघ सूची में एक प्रविष्टि 92क शामिल की गई ।7. संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956-
राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने और पारिणामिक परिवर्तनों को शामिल करने के उद्देश्य से यह संशोधन किया गया । मोटे तौर पर तत्कालीन राज्यों और राज्य क्षेत्रों का राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के रूप में वर्गीकरण किया गया । संशोधन में लोकसभा का गठन, प्रत्येक जनगणना के पश्चात पुनः समायोजन, नए उच्च न्यायालयों की स्थापना और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि के बारे में उपबंधों की भी व्यवस्था की गई है ।8. संविधान (आठवां संशोधन) अधिनियम, 1960-
संसद और राज्य विधान मंडलों में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए और नाम निर्देशन द्वारा आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए स्थानों के आरक्षण की अवधि 10 वर्ष तक और बढ़ाने के लिए अनुच्छेद-334 में संशोधन किया गया ।9. संविधान (नौवां संशोधन) अधिनियम, 1960-
भारत और पाकिस्तान की सरकारों के बीच हुए करारों के अनुसरण में पाकिस्तान को कतिपय राज्य क्षेत्रों का हस्तांतरण करने की दृष्टि से यह संशोधन किया गया । यह संशोधन इसलिए आवश्यक हुआ कि बेरुबाड़ी के हस्तांतरण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि किसी राज्य-क्षेत्र को किसी दूसरे देश को देने के करार को अनुच्छेद-3 के अधीन बनाई गई किसी विधि द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकता, अपितु इसे संविधान में संशोधन करके ही क्रियान्वित किया जा सकता है ।10. संविधान (10वां संशोधन) अधिनियम, 1961-
दादरा और नगर हवेली के क्षेत्र को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल करने और राष्ट्रपति की अधिनियम बनाने की शक्तियों के तहत् उसमें प्रशासन की व्यवस्था करने के लिए अनुच्छेद-240 और पहली अनुसूची को संशोधित किया गया ।11. संविधान (11वां संशोधन) अधिनियम, 1961-
इस संशोधन का उद्देश्य संविधान के अनुच्छेद 66 और 71 का इस दृष्टि से संशोधन करना था, जिसमें उपयुक्त निर्वाचक मंडल में किसी ख़ाली पद के आधार पर राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति के निर्वाचन को चुनौती न दी जा सके ।12. संविधान (12वां संशोधन) अधिनियम, 1962-
इस संशोधन के द्वारा गोवा, दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल किया गया और इस प्रयोजन के लिए अनुच्छेद-240 का संशोधन किया गया ।13. संविधान (13वां संशोधन) अधिनियम, 1962-
इस संशोधन द्वारा भारत सरकार और नगा पीपुल्स कंवेंशन के बीच हुए एक करार के अनुसरण में नगालैंड राज्य के संबंध में विशेष उपबंध करने के लिए एक नया अनुच्छेद-371(ए) जोड़ा गया ।14. संविधान (14वां संशोधन) अधिनियम, 1962-
इस अधिनियम के द्वारा पुद्दुचेरी केंद्र शासित प्रदेश के रूप में प्रथम अनुसूची में जोड़ा गया और इस अधिनियम द्वारा हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, गोवा, दमन और दीव तथा पुद्दुचेरी के केंद्र शासित प्रदेशों के लिए संसदीय विधि द्वारा विधान मंडलों का गठन किया जा सका ।15. संविधान (15वां संशोधन) अधिनियम, 1963-
इस संशोधन द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने और एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किए जाने वाले न्यायाधीशों को प्रतिपूरक भत्ता देने का उपबंध किया गया । इस अधिनियम द्वारा सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थान पर नियुक्त किए जाने की भी व्यवस्था की गई है । अनुच्छेद-226 का भी विस्तार किया गया, ताकि उच्च न्यायालयों को यह शक्ति दी जा सके कि वे किसी प्राधिकारी को निर्देश, आदेश या हुक्मनामा (रिट) जारी कर सकें । यदि ऐसी शक्ति के प्रयोग के लिए वाद का कारण उन राज्य क्षेत्रों में उत्पन्न हुआ हो, जिनमें वहां का उच्च न्यायालय क्षेत्राधिकार का प्रयोग करता है, चाहे उस सरकारी अधिकारी का स्थान इन राज्य क्षेत्रों के अंदर नहीं हो । इस अधिनियम द्वारा सेवा आयोगों के अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उसकी शक्तियों का प्रयोग किसी एक सदस्य द्वारा किए जाने का भी प्रावधान है ।16. संविधान (16वां संशोधन) अधिनियम, 1963-
इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-19 में संशोधन किया गया, जिसमें भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता के हित में शांतिपूर्ण और शस्त्रहीन सम्मिलन तथा संस्था बनाने के लिए वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकारों पर प्रतिबंध लगाया गया । संसद और राज्य विधान मंडलों के निर्वाचन के लिए उम्मीदवारों द्वारा ली जाने वाली शपथ या अधिनियम का संशोधन करके उसमें यह शर्त भी शामिल की गई कि वे भारत की प्रभुसत्ता और अखंडता को अक्षुण रखेंगे । इन संशोधनों का उद्देश्य राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना है ।17. संविधान (17वां संशोधन) अधिनियम, 1964-
अनुच्छेद-31क में और आगे संशोधन किया गया, जिसके अनुसार निजी खेती के अधीन भूमि का अधिग्रहण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक कि प्रतिपूर्ति के रूप में उसका बाजार मूल्य न दिया जाए । साथ ही, इस संशोधन द्वारा उक्त अनुच्छेद में दी गई 'संपदा' की परिभाषा को पीछे की तारीख से लागू किया गया । नौवीं अनुसूची में भी संशोधन किया गया और उसमें 44 और अधिनियम शामिल किए गए ।18. संविधान (18वां संशोधन) अधिनियम, 1966-
इस अधिनियम द्वारा अनुच्छेद-3 का संशोधन यह स्पष्ट करने के लिए किया गया कि 'राज्य' शब्द में केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल होगा और इस अनुच्छेद के तहत् नया राज्य बनाने की शक्ति में किसी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के एक भाग को किसी दूसरे राज्य या केंद्र शासित प्रदेश से मिलाकर एक नया राज्य या केंद्र शासित प्रदेश बनाने की शक्ति को भी शामिल किया गया ।19. संविधान (19वां संशोधन) अधिनियम, 1966-
निर्वाचन न्यायाधिकरणों को समाप्त करने और उच्च न्यायालय द्वारा चुनाव याचिकाओं की सुनवाई किए जाने के निर्णय के परिणामस्वरूप अनुच्छेद-324 का संशोधन इस पारिणामिक परिवर्तन के लिए किया गया ।20. संविधान (20वां संशोधन) अधिनियम, 1966-
यह संशोधन चन्द्रमोहन बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में उच्चतम न्यायालय के उस निर्णय के कारण आवश्यक हुआ, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने उत्तर प्रदेश राज्य में जिला न्यायाधीशों की कतिपय नियुक्तियों को निरस्त घोषित कर दिया था । एक नया अनुच्छेद-233ए जोड़ा गया और राज्यपाल द्वारा की गई नियुक्तियों को वैध बना दिया गया ।
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